भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक थे कनाईलाल दत्त जो कि आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। इन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन का पूर्ण विरोध किया और क्रांतिकारी बारीन्द्र कुमार के दल में शामिल हो गए। इनके दल का एक युवक नरेन गोस्वामी अंग्रेज़ों का सरकारी मुखबिर बन गया। क्रांतिकारियों ने इससे बदला लेने का निश्चय कर लिया और अपना यह कार्य पूर्ण करने के बाद ही कनाईलाल पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई।.. आइए एक बार फिर याद करते हैं इस वीर क्रांतिकारी की शहादत को जो कहीं ईतिहास के पन्नों में खो गया।
कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त, 1888 ई. को ब्रिटिश कालीन बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था। उनके पिता चुन्नीलाल दत्त ब्रिटिश भारत सरकार की सेवा में मुंबई में नियुक्त थे। पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली।
अपने विद्यार्थी जीवन में कनाईलाल दत्त प्रोफेसर चारुचंद्र राय के प्रभाव में आए। प्रोफेसर राय ने चंद्रनगर में 'युगांतर पार्टी' की स्थापना की थी। कुछ अन्य क्रान्तिकारियों से भी उनका सम्पर्क हुआ जिनकी सहायता से उन्होंने गोली का निशाना साधना सीखा। 1905 ई. के 'बंगाल विभाजन' विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल ने आगे बढ़कर भाग लिया तथा वे इस आन्दोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के भी सम्पर्क में आये।
बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कनाईलाल कोलकाता चले गए और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी बारीन्द्र कुमार घोष के दल में सम्मिलित हो गए। यहां वे उसी मकान में रहते थे जहां क्रान्तिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र और बम आदि रखे जाते थे। अप्रैल, 1908 ई. में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुज़फ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर आक्रमण किया। इसी सिलसिले में 2 मई, 1908 को कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि गिरफ्तार कर लिये गए। इस मुकदमे में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया। योज़ना के तहत क्रान्तिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने के लिए मुलाकात के समय चुपचाप बाहर से रिवाल्वर मंगाए। कनाईलाल दत्त और उनके एक साथी सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए, फिर कनाईलाल भी बीमार पड़ गये। सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास संदेश भेजा कि मैं जेल के जीवन से ऊब गया हूं और तुम्हारी ही तरह सरकारी गवाह बनना चाहता हूं। मेरा एक और साथी हो गया इस प्रसन्नता से वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल जा पहुंचा। फिर क्या था, उसे देखते ही सत्येन और कनाईलाल दत्त ने उसे गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। दोनों पकड़ लिये गए और दोनों को मृत्युदंड मिला।
कनाईलाल के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाज़त नहीं होगी। 10 नवम्बर, 1908 को कनाईलाल कलकत्ता (कोलकाता) में फांसी के फंदे पर झूलकर शहीद हो गए। मात्र बीस वर्ष की आयु में ही शहीद हो जाने वाले कनाईलाल दत्त की शहादत को भारत में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji
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