Wednesday 28 October 2020

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भगिनी निवेदिता की भूमिका

(28 - अक्टूबर, विशेष श्रद्धांनजली भगीनि निवेदिता को )

भगिनी निवेदिता से अधिकतर भारतीय परिचित नहीं हैं और अगर कुछ है भी तो वे उनको मात्र स्वामी विवेकानंद की एक शिष्या के रूप में जानते है। इतिहास और इतिहासकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया ।  भला हम भगिनी निवेदिता के अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के प्रति श्रद्धा , भारत के लिए  सेवा का संकल्प और भारतीयों के लिए किया गया त्याग  कैसे भूल सकते हैं। उन्होंने  उस समय के गुलाम देश भारत के अनजान लोगों के बीच शिक्षा और  स्वास्थ के क्षेत्र में सेवा देने का कार्य किया। अंग्रेज़ो की भारतीयों के ऊपर क्रूरता देखि तो सहन नहीं कर पाई और  स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गई भारत की आज़ादी के लिए दो -दो हाथ करने।  भगिनी निवेदिता ने सेवा का कार्य निस्वार्थ भाव से किया , ना कोई इच्छा - अनिच्छा , ना कोई धर्मांतरण का छलावा , वह भारत में आकर भारतीयता के रंग में रंग ही  गई। स्वामीनाथन गुरुमूर्ति जी के अनुसार  '' वह भारत में भले ही ना पैदा हुई हो लेकिन भारत के लिए पैदा हुई थी ''। स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल कहते हैं की ''निवेदिता जिस प्रकार भारत को प्रेम करती हैं , भारतवासियों ने भी भारत को उतना प्रेम किया होगा - इसमें संदेह हैं''। उनका  भारत के प्रति  स्नेह उनकी पुस्तके ''काली द मदर '', ''द वेब ऑफ इन्डियन लाइफ'' ,''क्रेडिल टेल्स ऑफ हिन्दुइज्म '',''एन इन्डियन स्टडी ऑफ लाइफ एन्ड डेथ '', ''मिथ्स ऑफ हिन्दूज एन्ड बुद्धिस्टस '' , ''फुटफाल्स ऑफ इन्डियन हिस्ट्री '', ''रिलिजन एन्ड धर्म '', ''सिविक एन्ड नेशनल आइडियल्स् '' को पढ़ कर जाना जा सकता है। 

भगिनी निवेदिता की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भागीदारी रही  - निवेदिता एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता  एक साथ साथ एक कुशल लेखिका भी थी।  उनके लेखों ने उस समय हज़ारों युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया था। जिसके कारन   ब्रिटिश सरकार के अधिकारी  उनकी जासूसी करते थे और उनके द्वारा लिखे गए पत्रों को सरकार पढ़ती  थी। 

निवेदिता को जब अंग्रेज़ों की भारतीयों के प्रति द्वेष और दमनकारी नीतियों के बारे में पता लगा तो उनके वैचारिक दृष्टि में परिवर्तन आने लगा Iउनको राजकीय स्वतंत्रता सबसे अधिक महत्वपूर्ण लगने लगी थी उनका मानना था सामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए देश का स्वाधीन होना बहुत आवश्यक है।

सितम्बर 1902 से निवेदिता ने पूरे भारत में स्वतंत्रता के लिए जनजागृति शुरू करदी थी, दमनकारी अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ वो सीधा आवाज़ उठाती थी I '' लिजेल रेमंड '' द्वारा लिखित भगिनी निवेदिता की जीवनी के अनुसार  20 अक्टूबर , 1902 को  निवेदिता बड़ौदा  पहुंची जहा उन्होंने  योगी अरविन्द से मुलाकात की योगी अरविन्द  उस समय 30 वर्ष की उम्र के थे।निवेदिता ने  उनको  कलकत्ता में चल रही राजनैतिक गतिविधयों से अवगत करवाया।  उन्होंने  योगी अरविन्द को  कलकत्ता आकर  स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी बनने का निमंत्रण  भी दिया और उसकी आवश्यकता भी समझाई। आने वाले समय में योगी अरविन्द और भगिनी निवेदिता ने साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए कार्य करते है। 1902 में महात्मा गाँधी भी भगिनी निवेतिता से कलकत्ता में मिले थे।  

1904 में भारत का प्रथम राष्ट्रीय ध्वज भी भगिनी निवेदिता द्वारा चित्रित किया गया था। ध्वज में लाल और पीले रंग की पट्टिया थी और वज्र (हथियारों के देवता इंद्रा ) जो की ताक़त का प्रतिक है  दर्शाया गया था। 
1906 और 1907 में ब्रिटिश सरकार की अनैतिक नीतियों के खिलाफ भगिनी निवेदिता ने भारतीय समाज को जागरूक करने के लिए लेख लिखने का कार्य सुनियोजित तरीके से शुरू कर दिया , प्रबुद्ध भारत , संध्या और न्यू इंडिया जैसे पत्रों में उनके लेख प्रकशित हुए। योगी अरविन्द के साथ  उन्होंने युगान्तर , कर्म -योगिन  और "वंदे मातरम" जैसे पत्रों में भी सेवा दी।    
 
 शिल्पकार अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और चित्रकार नंदलाल बोस को राष्ट्रवादी चित्र बनाने के लिए और दक्षिण भारत के कवी सुब्रमणियम भारती को श्रृंगार रस की कविताएँ छोड़ कर वीर रस की कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित करती है ताकि इनके माध्यम से युवा प्रेरित हो और स्वतंत्रता आंदोलन में  भाग ले I 

वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु के परिवार के साथ भी निवेदिता के आत्मीय सम्बन्ध थे, डॉ. बसु को उनके शोध कार्य में और मानसिक रूप से निवेदिता सहयोग करती थी I 1905 में लार्ड कर्जन बंगाल का विभाजन कर देते है Iबंगाल में स्वदेशी आंदोलन का बिगुल बज जाता है , निवेदिता भी उसमें सहभागिता निभाती  हैं और अंग्रेज़ो से सीधा दो-दो हाथ करती है I स्वदेशी का महत्व बताने के लिए आम सभाओं का आयोजन किया गया। भगिनी निवेदिता को वक्त के तौर पर इन सभाओं में बुलाया जाता था जहा वह स्वदेश का प्रचार - प्रसार भी करती थी और स्वावलम्बी बनने का सन्देश भी देती थी। सभी क्रांतिकारियों के संगठित प्रयास से विभाजन वापस लिया गया। 1905 बनारस  में  कांग्रेस  का अधिवेशन भी आजोजित किया गया था जिसमे गोपाल कृष्ण गोखले अध्यक्ष रहे।  भगिनी निवेदिता को भी निमंत्रित किया गया था , नरम और गरम दाल के दोनों नेता वह पहुंचे थे जिनके साथ भगिनी का अच्छा परिचय हुआ जो बाद में अंग्रेज़ो के खिलाफ आंदोलन करने में काम आया।  रबिन्द्रनाथ टैगोर निवेदिता के कार्य को देख कर उनको ''लोकमाता''का दर्जा देते है I उनके कार्य के महत्व को हम भारतीय इतिहास के सबसे बड़े क्रांतिकारियों मेसे एक सुभाष चंद्र बोस के शब्दों से जान सकते है जो उन्होंने  भगिनी निवेदिता के बारे में कहे की -'' मैंने भारत को प्रेम करना सीखा स्वामी विवेकानंद को पढ़ कर और स्वामी विवेकानंद को मैंने समझा भगिनी निवेदिता के पत्रों से ''I

स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारन मात्र 44 साल की उम्र में 13 अक्टूबर 1911 को  बंगाल के  एक नगर दार्जीलिंग में उनका निधन हो गया।

(लेखक निखिल यादव - विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं। )

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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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