Friday, 28 May 2021

स्वातंत्र्यवीर सावरकर को श्रद्धांजली

भारतमाता के वीर सपूत स्वातंत्र्यवीर सावरकर - (२८ मई, जयन्ती पर विशेष)

अप्रितम क्रान्तिकारी, दृढ़ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान कवि और महान इतिहासकार आदि अनेकानेक गुणों के धनी वीर सावरकर हमेशा नये कामों में पहल करते थे। उनके इस गुण ने उन्हें महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया। वीर सावरकर के नाम के साथ इतने प्रथम जुड़े हैं इन्हें नये कार्यों का पुरोधा कहना कुछ गलत न होगा। सावरकर ऐसे महानतम हुतात्मा थे, जिसने भारतवासियों के लिए सदैव नई मिशाल कायम की, लोगों की अगुवाई करते हुए उनके लिए नये मार्गों की खोज की। कई ऐसे काम किये जो उस समय के शीर्ष भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और क्रान्तिकारी लोग नहीं सोच पाये थे।

'यंग इंडिया' में महात्मा गांधी ने 18 मई, 1921 को लिखा था कि "सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग जन-कल्याण के लिए होना चाहिए। अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे। एक सावरकर भाई को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला था। वे बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं। वे क्रान्तिकारी हैं और इसे छिपाते नहीं। मौजूदा शासन प्रणाली की बुराई का सबसे भीषण रूप उन्होंने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले, देख लिया था। आज भारत को, अपने देश को, दिलोजान से प्यार करने के अपराध में वे कालापानी भोग रहे हैं।" महात्मा गांधीजी ने यह सब उस समय लिखा था, जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर अपने बड़े भाई गणेश सावरकर के साथ अंडमान में कालापानी की कठोरतम सजा काट रहे थे। (हार्निमैन और सावरकर बंधु, पृष्ठ-102, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय)

भारतमाता के वीर सपूत सावरकर के बारे में आज अनाप-शनाप बोलनेवाले कम्युनिस्टों और महात्मा गांधी के 'नकली उत्तराधिकारियों' को शायद यह पता ही नहीं होगा कि सावरकर बंधुओं के प्रति महात्मा कितना पवित्र और सम्मान का भाव रखते थे।

महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर की मुलाकात लंदन में 1909 में विजयदशमी के एक आयोजन में हुई थी। लगभग 12 वर्ष बाद भी महात्मा गांधी की स्मृति में यह मुलाकात रहती है और जब वे अपने समाचार-पत्र यंग इंडिया में सावरकर के कारावास और उनकी रिहाई के संबंध में लिखते हैं, तो पहली मुलाकात का उल्लेख करना नहीं भूलते। इसका एक ही अर्थ है कि क्रान्तिवीर सावरकर और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके प्रयासों ने महात्मा गांधी के मन पर गहरी छाप छोड़ी थी।

भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों के इतिहास में वीर सावरकर का नाम बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। महान देशभक्त और क्रान्तिकारी सावरकर ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। अपने राष्ट्रवादी विचारों के कारण जहाँ सावरकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे, वहीं देश की स्वतंत्रता के बाद भी उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा।

पहल करनेवालों में ''प्रथम'' थे सावरकर
वीर सावरकर द्वारा किये गए कुछ प्रमुख कार्य जो किसी भी भारतीय द्वारा प्रथम बार किए गए -
    • वे प्रथम नागरिक थे जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरूद्ध क्रान्तिकारी आंदोलन संगठित किया।
    • वे पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी।
    • सावरकर पहले भारतीय थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
    • वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
    • वे पहले भारतीय थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एक हजार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा।
    • वे पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया।
    • वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
    • वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
    • सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।
    • सावरकर ही वे पहले कवि थे, जिसने कलम-कागज के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हजार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुँच गई।

सन् 1947 में विभाजन के बाद आज भारत का जो मानचित्र है, उसके लिए भी हम सावरकर के ऋणी हैं। जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के 'डायरेक्ट एक्शन' और बेहिसाब हिंसा से घबराकर देश का विभाजन स्वीकार कर लिया, तो पहली ब्रिटिश योजना के अनुसार पूरा पंजाब और पूरा बंगाल पाकिस्तान में जाने वाला था - क्योंकि उन प्रान्तों में मुस्लिम बहुमत था। तब सावरकर ने अभियान चलाया कि इन प्रान्तों के भारत से लगनेवाले हिन्दू बहुल क्षेत्रों को भारत में रहना चाहिए। लार्ड मांउटबेटन को इसका औचित्य मानना पड़ा। तब जाकर पंजाब और बंगाल को विभाजित किया गया। आज यदि कलकत्ता और अमृतसर भारत में हैं तो इसका श्रेय वीर सावरकर को ही जाता है।

वीर सावरकर भारतीय इतिहास के चमकते सूरज हैं, स्वातंत्र्यवीर तो लोगों के दिलों में बसते हैं। युगद्रष्टा सावरकर भारत के ऐसे नायकों में शामिल हैं, जो यशस्वी क्रान्तिकारी हैं, समाज उद्धारक हैं, उच्च कोटि के साहित्यकार हैं, राजनीतिक विचारक एवं प्रख्यात चिन्तक भी हैं। भारत के निर्माण में उनका योगदान कृतज्ञता का भाव पैदा करता है। उनका नाम कानों में पड़ते ही मन में एक रोमांच जाग जाता है। गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। श्रद्धा से शीश झुक जाता है।

ऐसे महान व्यक्तित्व को शत शत नमन।

- लोकेन्द्र सिंह

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,
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