Tuesday 30 July 2024

The Advice of Bulbul

In a jungle, many monkeys lived. They spent their days leaping from branch to branch, tree to tree, eating sweet fruits and sour tamarinds. While they were generally happy, they had one major issue: they struggled during the winter. They didn't know how to build homes, and when the leaves fell from the trees, they lost their warmth.

Once, during the cold month of Margashirsha, severe weather struck with unexpected rain and biting winds. The monkeys were miserable, their teeth chattering from the cold. Seeking a solution, one monkey noticed some chanothi/gunja seeds, which appeared like fire, and suggested collecting them for warmth. All the monkeys agreed and began gathering the chanothi/gunja seeds.

Nearby, a bulbul bird, observing their actions, tried to warn them that these were chanothi/gunja seeds, not fire, and wouldn't provide warmth. The bird advised the monkeys to build homes to stay warm. However, the monkeys, irritated by the bird's interference, ignored the advice. Angrily, they captured the bird, broke its neck, and destroyed its nest.

The moral of the story: "Never offer advice to fools. They will not only ignore it but may also harm you."

(Story from Panchtantra)
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एक जंगल में बहुत सारे बंदर रहते थे। पूरा दिन इस डाल से उस डाल, इस पेड़ से उस पेड़... बस कूदते रहते। मीठे-मीठे फल खाते, खट्टी-खट्टी इमली खाते। वैसे तो उन्हें हर बात में सुख था लेकिन एक बात का बहुत दुख था।

सर्दी आने पर ठंड में ठिठुर जाते। दुखी हो जाते। घर बनाना उन्होंने सीखा नहीं था। सर्दियों में पेड़ों के पत्ते भी गिर जाते, जिससे उनकी गर्मी भी कम हो जाती।
एक बार, जब मार्गशीर्ष का महीना चल रहा था। कुदरत कोप में थी और भयंकर ठंड शुरू हो गई। उसमें बेमौसम बारिश पड़ने लगी। ऊपर से सन-सन करती ठंडी हवा...
बंदर तो परेशान हो गए। भीगने से ठंड और ज्यादा लगने लगी। सभी के दांत कटकटाने लगे।

सभी बंदर ठंड से बचने का उपाय खोजने लगे। तभी एक बंदर को चनोथी दिखी। उसने कहा, 'यह आग के टुकड़े लगते हैं। इन्हें इकट्ठा करें। फिर इसे जलाकर गर्मी पाएंगे और ठंड दूर होगी।'

सभी बंदर सहमत हो गए। और जब चनोथी इकट्ठा कर रहे थे, तभी एक बुलबुल का घोंसला था। बुलबुल अपने घोंसले में बैठकर बंदरों की गतिविधि देख रही थी। उसने सोचा, ये मूर्ख बंदर ये नहीं समझते कि ये चनोथी हैं, आग नहीं। इससे उनकी ठंड कम नहीं होगी! लाओ, मैं उन्हें समझाती हूँ ताकि वे ये मेहनत छोड़कर ठंड से बचने का दूसरा उपाय खोजें।
बुलबुल ने एक बंदर से कहा, 'भाई! यह तो चनोथी है, आग नहीं। आप बेवजह इसे इकट्ठा कर रहे हैं। इससे आपको ठंड से कोई राहत नहीं मिलेगी।'

'ओए, तुम अपने काम से काम रखो। तुम्हें समझ है, यह हम जानते हैं। हमारे काम में दखल मत दो।' बंदर ने गुस्से में दांत दिखाकर कहा। 

'हम छोटे-छोटे पक्षी होते हुए भी घोंसला बनाकर रहते हैं। जबकि तुम इतने बड़े हो, भगवान ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं, समझ दी है। तो तुम अपना घर क्यों नहीं बना लेते! घर होता तो ठंड नहीं लगती, है ना?'

अब बंदरों को गुस्सा आ गया। इतनी छोटी बुलबुल हमें सलाह दे रही है! बंदरों ने बुलबुल को पकड़कर उसकी गरदन मरोड़ दी और नीचे फेंक दिया। उसका घोंसला भी तोड़ दिया। बेचारी बुलबुल तुरंत मर गई।

'हे बच्चों! मूर्खों को कभी सलाह नहीं देनी चाहिए। नहीं तो वे आपका ही विरोध करेंगे और आपको नुकसान पहुंचाएंगे।'
(पंचतंत्र से)

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कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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