Sunday 27 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 15

यहाँ स्मरणीय है कि विद्या मन्दिर तथा सारदापीठ के नाम से जो विशाल शिक्षा-केन्द्र रामकृष्ण मिशन द्वारा परिचालित हो रहे हैं, उसकी नींव जिन लोगों के आशीर्वाद से सिंचित हुई है, उनमें स्वामी विरजानन्द ही प्रमुखतम हैं। स्वामीजी के आदर्श के अनुसार रामकृष्ण मिशन का यह विशेष शिक्षा-प्रयास स्वामी विमुक्तानन्द की कार्य-कुशलता तथा साधना के फलस्वरूप ही साकार हो सका था। स्वामी विरजानन्द के निरन्तर प्रोत्साहन तथा प्रेरणा ने ही स्वामी विमुक्तानन्द में कर्मशक्ति उत्पन्न की थी। स्वामी विरजानन्द प्रायः ही कहते, 'स्वामीजी विमुक्तानन्द के ऊपर सवार हो गए हैं।' प्रायः अपने हर पत्र में स्वामी विरजानन्द उन्हें प्रेरणा देते हुए इस प्रकार लिखते, 'तुम कॉलेज के लिए जो इतना प्रयास कर रहे हो, यह देखकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होती है। श्रीठाकुर और स्वामीजी की इच्छा से यह कार्य सम्पन्न हो जाए, तो सबको बड़ा आनन्द होगा।'

३१ जनवरी १९४० ई. को, स्वामीजी की पुनीत आविर्भाव-तिथि के अवसर पर, मठाधीश विरजानन्दजी के कर कमलों द्वारा ही रामकृष्ण मिशन के सर्वप्रथम कॉलेज - विद्या मन्दिर का शिलान्यास हुआ। १९४१ई. की ४ जुलाई को, स्वामीजी के महाप्रयाण दिवस पर, इस संस्था का कार्य आरम्भ हुआ। श्यामलाताल से विरजानन्दजी का आशीर्वाद तार के माध्यम से आया था - 'इसकी उज्ज्वल सफलता के लिए श्रीरामकृष्ण तथा स्वामीजी की कृपा तथा आशीर्वाद इस पर वर्षित हों। इसके साथ ही मैं अपनी प्रार्थना भी भेजता हूँ।'

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Saturday 26 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 14

अध्यक्ष होने के शीघ्र बाद ही विरजानन्दजी हृदय तथा यकृत के रोगग्रस्त हो गए। पर उन्हें कर्म से भला कहाँ विश्राम था ! मठ तथा मिशन के विभिन्न दायित्वपूर्ण कार्यों में लगे रहने के बावजूद संघ-संचालन की विभिन्न छोटी-मोटी बातों पर भी उनकी सदा सतर्क दृष्टि लगी रहती थी। संघ के संन्यासियों के आध्यात्मिक जीवन के नियोजन के लिए विशेष प्रयत्न करना भी संघनायक विरजानन्दजी का एक प्रमुख लक्ष्य था। उनके निरभिमान नेतृत्व में एक अद्भुत आकर्षण था। संघगुरु होकर भी सभी संन्यासियों के श्रेष्ठ सेवक के रूप में अपना परिचय देते हुए उन्हें एक असाधारण गौरव-बोध होता था। अपने संन्यासी-शिष्यों को उपदेश देते समय उन्हें यह कहते सुना गया है, 'अपने संघ के संन्यासी-सेवकों के प्रमुख संन्यासी-सेवक के रूप में, मैं अपने प्रेम और उससे भी अधिक अपने कर्तव्य द्वारा, अपने जीवन की अन्तिम साँस तक तुम सबकी सेवा करने को बाध्य हूँ।'

अपने गुरुदेव के आदेश का अक्षरशः पालन करना ही विरजानन्दजी के जीवन का व्रत था। इसीलिए उनके बाद के जीवन में पग-पग पर, उनके हर वाक्य में, स्वामीजी का आदेश तथा इच्छा को साकार करने की कामना ही व्यक्त हुई है। स्वामीजी द्वारा परिकल्पित संघ की कार्यप्रणाली के वे ही सर्वश्रेष्ठ धारक तथा वाहक थे। स्वामीजी की कल्पना का भारत उनके भी ध्यान में प्रकट हुआ था। 'सम्पूर्ण विश्व की मुक्ति भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण पर ही निर्भर है' स्वामीजी के इस सन्देश का प्रचार करते हुए वे सारे भारत का दौरा करते रहे। उनके गुरुदेव की आकांक्षाएँ उनके मनश्चक्षुओं के समक्ष मानो वास्तविक रूप धारण कर लेती थी। स्वामीजी की जन्म शताब्दी के अवसर पर बेलूड़ मठ में जिस 'विवेकानन्द विश्वविद्यालय' की स्थापना का प्रयास हुआ था, उसके काफ़ी पूर्व ही विरजानन्दजी ने एक व्याख्यान में उसकी परिकल्पना देते हुए कहा था, 'मैं निश्चित रूप से विश्वास करता हूँ कि मेरे परम प्रिय आचार्य की जाग्रत भारत की आकांक्षा अवश्य पूर्ण होगी। कुछ वर्ष पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि स्वामीजी के निर्देश के अनुरूप गंगा के तट पर श्री रामकृष्ण की स्मृति में एक भव्य मन्दिर इतनी शीघ्र स्थापित हो सकेगा। और अब मिशन स्वामीजी की भविष्य दृष्टि के अनुरूप एक कॉलेज स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, जो सम्भवतः विश्वविद्यालय का केन्द्र-स्वरूप हो।'

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Friday 25 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 13

एक संन्यासी का मर्मस्पर्शी संस्मरण यहाँ उद्धृत करने योग्य है - 'एक बार मैंने विरजानन्दजी से पूछा था, "महाराज, आपका स्वास्थ्य इस समय इतना ख़राब है। आपको प्रायः ही तेज बुख़ार रहता है, तो भी आप सुबह नौ बजे से दो-ढाई बजे तक दीक्षा के लिए बैठते हैं। आपके लिए इतना श्रम करना उचित नहीं है। महापुरुष महाराज तो अपने अन्तिम दिनों में बिस्तर पर बैठे-बैठे ही एक साथ अनेक लोगों को दीक्षा दे देते थे। आप भी वैसा ही क्यों नहीं करते?" मेरी यह बात सुनकर उन्होंने हँसते हुए उत्तर दिया, "ठाकुर इस शरीर के द्वारा जितने लोगों पर जितनी भी कृपा करवाना चाहेंगे, उतना तो मुझे करना ही होगा, भाई। तो फिर मैं हड़बड़ी क्यों करूँ?"י

संघाध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई बार भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा करते हुए श्रीरामकृष्ण-विवेकाननन्द के सन्देश को घर-घर तक पहुँचाया। जब भी, जहाँ भी उनका पदार्पण हुआ हर नर-नारी तथा बालक-वृद्ध आकर उन्हें घेर लेते और अपने-अपने भाव के अनुसार शान्ति तथा सांत्वना पाकर घर लौटते। 'यदि तू अपनी मुक्ति के लिए चेष्टा करेगा, तो निश्चित रूप से नरक में जाएगा; और यदि दूसरों की मुक्ति के लिए कार्य करेगा, तो तत्काल मुक्त हो जाएगा' - लगता है कि श्रीगुरु का यह आदेश विरजानन्दजी के हृदय में सर्वदा स्पन्दित होता रहता था, इसीलिए उनके जीवन में 'परोपकार-व्रत' इतने उज्ज्वल रूप से मूर्तिमान हो उठा था। इतिहास साक्षी है कि उनके नेतृत्व मे रामकृष्ण संघ का काफ़ी विस्तार हुआ।

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26