हे भारत ! केवल दूसरों की हाँ में हाँ में हाँ मिलाकर, दूसरों की इस क्षूद्र नक़ल के द्वारा, दूसरों का ही मुँह ताकते रहकर........ क्या तू इसी पाथेय के सहारे, सभ्यता और महानता के चरम शिखर पर चढ़ सकेगा? क्या तू अपनी इस लज्जास्पद कायरता के द्वारा उस स्वाधीनता को प्राप्त कर सकेगा जिसे पाने के अधिकारी केवल साहसी और वीर है? हे भारत ! मत भूल, तेरे नारीत्व का आदर्श सीता, सावित्री और दमयन्ती है। मत भूल कि तेरे उपास्यदेव देवाधिदेव सर्वस्वत्यागी, उमापति शंकर है। मत भूल कि तेरा विवाह, तेरी धन-संपत्ति, तेरा जीवन केवल विषय- सुख के हेतु नहीं है, केवल तेरे व्यक्तिगत सुखोपभोग के लिए नहीं है। मत भूल कि तू माता के चरणों में बलि चढ़ने के लिए ही पैदा हुआ हैं। मत भूल कि तेरी समाज - व्यवस्था उस अनन्त जगज्जननी महामाया की छाया मात्र हैं। मत भूल कि नीच, अज्ञानी, दरिद्र, अनपढ़, चमार, मेहतर सब तेरे रक्त मांस के है, वे सब तेरे भाई है। ओ वीर पुरुष ! साहस बटोर, निर्भीक बन और गर्व कर कि तू भारतवासी है। गर्व से घोषणा कर कि "मैं भारतवासी हूँ, प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है। " मुख से बोल, "अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र और पीड़ित भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चाण्डाल भारतवासी सभी मेरे भाई है।" तू भी एक चिथड़े से अपने तन की लज्जा को ढँक ले और गर्वपूर्वक उच्च-स्वर से उद्धोष कर, "प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देवी-देवता मेरे ईश्वर है। भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, मेरे यौवन की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है।" मेरे भाई, कह : "भारत की मिटटी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में ही मेरा कल्याण है।" अहोरात्र जपा कर, "हे गौरीनाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो। हे शक्तिमयी माँ ! मेरी दुर्बलता को हर लो; मेरी कापुरुषता को दूर भगा दो और मुझे मनुष्य बना दो, माँ !" ~ स्वामी विवेकानन्द | | O India! With this mere echoing of others, with this base imitation of others, with this dependence on others, this slavish weakness, this vile detestable cruelty -- wouldst thou, with these provisions only, scale the highest pinnacle of civilisation and greatness? Wouldst thou attain, by means of thy disgraceful cowardice, that freedom deserved only by the brave and the heroic? O India! Forget not that the ideal of thy womanhood is Sita, Savitri, Damayanti; Forget not that the God thou worshippest is the great Ascetic of ascetics, the all-renouncing Shankara, the Lord of Uma; Forget not that thy marriage, thy wealth, thy life are not for sense-pleasure, are not for thy individual personal happiness; Forget not that thou art born as a sacrifice to the Mother's altar; Forget not that thy social order is but the reflex of the Infinite Universal Motherhood; Forget not that the lower classes, the ignorant, the poor, the illiterate, the cobbler, the sweeper, are thy flesh and blood, thy brothers. Thou brave one, be bold, take courage, be proud that thou art an Indian, and proudly proclaim, " I am an Indian, every Indian is my brother. " Say, " The ignorant Indian, the poor and destitute Indian, the Brahmin Indian, the Pariah Indian, is my brother. " Thou, too, clad with but a rag round thy loins proudly proclaim at the top of thy voice: " The Indian is my brother, the Indian is my life, India's gods and goddesses are my God. India's society is the cradle of my infancy, the pleasure-garden of my youth, the sacred heaven, the Varanasi of my old age. " Say, brother; " The soil of India is my highest heaven, the good of India is my good, " and repeat and pray day and night, " O Thou Lord of Gauri, O Thou Mother of the Universe, vouchsafe manliness unto me! O Thou Mother of Strength, take away my weakness, take away my unmanliness, and make me a Man! " -Swami Vivekananda |