Sunday, 20 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 8

इस भ्रमण के दौरान उन्होंने मथुरा, वृन्दावन, कनखल, हरिद्वार आदि तीथों के दर्शन भी किए थे। उनके गुरुभ्राता कल्याणानन्द के अथक परिश्रम से कुछ समय पूर्व कनखल में भी सेवाश्रम स्थापित हुआ था। विरजानन्द ने भी इस सेवाश्रम के लिए अर्थभिक्षा की थी। इसके बाद उन्होंने ऋषीकेश में कुछ दिन ध्यान-चिन्तन में बिताया था।

गुजराँवाला में विरजानन्द की भेट अद्वैतवादी साधु स्वामी हंसराज के साथ हुई। उनके पास स्वामीजी के हस्ताक्षर से युक्त एक काग़ज़ का टुकड़ा देखकर वे परम आनन्दित हुए। उस काग़ज़ पर संस्कृत तथा अँग्रेज़ी भाषा में लिखा था, 'आज से स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती स्वामी हंसराज के नाम से जाने जाएँगे।' 

कराची में उनकी स्वामी सच्चिदानन्द तथा सुरेश्वरानन्द के साथ भेंट हुई। उन लोगों के साथ वे पोरबन्दर होते हुए द्वारका के दर्शन कर आए। उसके बाद विरजानन्द जूनागढ़ तथा गिरनार होते हुए अहमदाबाद गए। उत्तरी तथा पश्चिमी भारत के सैकड़ों लोग उनकी उच्च आध्यात्मिकता तथा उदार व्यक्तित्व के सम्पर्क में आकर काफ़ी लाभान्वित हुए। उनकी इस प्रचार-यात्रा के फलस्वरूप 'प्रबुद्ध भारत' पत्रिका के ग्राहकों की संख्या में भी आशातीत वृद्धि हुई।

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : https://www.vrmvk.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ https://prakashan.vrmvk.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   koo   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

No comments:

Post a Comment