Saturday 20 August 2016

स्वतंत्रता दिवस भाषण -4

स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का मूल पाठ

मेरे प्यारे देशवासियों,

भाइयो-बहनों, आज पूरे विश्‍व का ध्‍यान भारत की उस बात पर जाता है कि भारत एक युवा देश है। Eight hundred million , 65 प्रतिशत जनसंख्‍या, जिस देश के पास 35 साल से कम उम्र की हो, वो देश अपनी युवा शक्ति के द्वारा क्‍या कुछ नहीं कर सकता है। और इसलिए मेरे भाइयों-बहनों, युवाओं को अवसर मिले, युवाओं को रोजगार मिेले, ये हमारे लिए समय की मांग है।

आज जब हम पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी की जन्‍मशती की ओर आगे बढ़ रहे हैं तब, पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी कह रहे थे, जो महात्मा गांधी के भी विचार थे कि 'आखिरी मानव का कल्‍याण'। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय अंत्‍योदय के विचार को ले करके चले। आखिरी छोर के इन्‍सान के कल्‍याण, ये पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी की political philosophy का केंद्रवर्ती विचार था। आखिरी व्‍यक्ति के विचार में वो कहते थे, हर नौजवान को शिक्षा उपलब्‍ध होनी चाहिए, हर नौजवान के हाथ में हुनर होना चाहिए, हर नौजवान को अपने सपने साकार करने के लिए अवसर होना चाहिए। पंडित दीनदयाल जी के उन सपनों को पूरा करने के लिए देश के eight hundred million युवाओं के आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हमने अनेक initiatives लिए हैं। जिस प्रकार से सड़क बढ़ रही है, देश में सबसे ज्‍यादा गाडि़यों का उत्‍पादन हो रहा है, देश में ज्‍यादा, सबसे ज्‍यादा Software निर्यात हो रहा है, देश में 50 से ज्‍यादा नई मोबाइल की फैक्ट्रियां लगी हैं, ये सारी बातें नौजवानों के लिए अवसर देती हैं। अगर दो करोड़ door toilet बनते हैं, तो उसने किसी न किसी को रोजगार दिया है। कहीं से सीमेंट लिया है, कहीं से लोहा लिया है, कहीं से लकड़ी का काम हुआ है। काम का व्‍याप जितना बढ़ेगा, रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी, आज हमने उस दिशा में बल दिया है।

उसी प्रकार से कोटि-कोटि युवकों के हाथ में हुनर हो। Skill development को mission के रूप में काम कर रहे हैं। हमने एक ऐसा कानून बदला। दिखने में बहुत छोटा है Model Shop and Establishment Act हमने राज्‍यों को advisory भेजी है कि क्‍या कारण है कि बड़े-बड़े mall तो 365 दिन चले, रात को 12 बजे तक चले, लेकिन गांव में एक छोटा-सा दुकान चलाने वाले को शाम के बाद दुकान बंद करनी पड़े? हर गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति भी दुकान चलाता है, उसको 365 दिन मौका देना चाहिए। क्‍या कारण है कि हमारी बहनों को रात को काम करने का अवसर न दिया जाए? हमने कानूनन व्‍यवस्‍था की है कि रात को भी हमारी बहनें काम पर जा सकती हैं। उनकी सुरक्षा और व्‍यवस्‍था का प्रबंध होना चाहिए लेकिन काम का अवसर मिलना चाहिए। ये चीजें हैं जो रोजगार बढ़ाने वाली चीजें हैं और भाइयों-बहनों हमारी इस दिशा में कोशिश है कि हम करने के लिए तैयार हैं।

भाइयो-बहनों, हम वो इंसान है, ये वो सरकार है, हम चीजों को टालने में विश्‍वास नहीं करते हैं। हम टालना नहीं, टकराना जानते हैं और इसलिए जब तक हम समस्‍याओं को सामने होकर के भिड़ते नहीं हैं, नहीं होता है। हमारे देश में, मेरे देश के लिए जीने-मरने वाले सेना के जवान, आज जब हम आजादी का जश्‍न मनाते हैं, कोई मेरा जवान सीमा पर गोलियों को झेलने के लिए तैयार खड़ा होगा, कोई बंकरों में बैठा होगा, कोई कभी रक्षाबंधन पर अपनी बहन को भी नहीं मिल पाता होगा। फौज में, सेना में कितने जवान काम कर रहे हैं। आजादी के बाद 33 हजार से ज्‍यादा, हमारे पुलिस के जवानों का बलिदान हुआ। हम क्‍यों भूल जाए उनको? हम उनको कैसे भूल सकते हैं। यही तो लोग हैं जिनके कारण हम सुख-चैन की जिन्‍दगी जी सकते हैं। इसलिए यह पर्व उनको भी नमन करने का है और कई वर्षों से 'One Rank-One Pension' का मसला लटका पड़ा था। हम टालने वालों में से नहीं, हम टकराने वालों में से हैं। हमने उसको पूरा किया, 'One Rank-One Pension'. हर हिन्‍दुस्‍तान के फौजी के घर में खुशहाली पहुंचा दी, इस काम को किया।

हमारे देश के लोगों की भावना थी कि नेताजी सुभाष बाबू की फाइलें, लोगों के सामने खुलें। आज मैं सर झुकाकर के कहता हूं कि जो काम असंभव था, टालने में, टाला जा रहा था, जो भी होगा हमने उन फाइलों को खोलने का निर्णय कर दिया। परिवार को बुलाकर के फाइलें रख दी और वो निरंतर प्रक्रिया आज भी जारी है। दुनिया के देशों को भी मैंने कहा है कि आपके यहां जो फाइलें है, आप उसको खोलिए, दीजिए। हिन्‍दुस्‍तान को सुभाष बाबू और भारत के इतिहास को जानने का हक है। उस दिशा में हमने काम किया।

बांग्‍लादेश, जिस दिन हिन्‍दुस्‍तान का विभाजन हुआ तब से लेकर के सीमा विवाद चले हैं। बांग्‍लादेश बना, तब से हमारा सीमा विवाद चला है। कई दशक चले गए। भाइयों-बहनों सभी दलों ने मिलकर के भारत-बांग्‍लादेश की सीमा विवाद का निपटारा कर दिया। संविधान में भी हमने बल दे दिया।

भाइयो-बहनों, मध्‍यम वर्ग का व्‍यक्‍ति अपना मकान बनाना चाहता है, फ्लैट लेना चाहता है लेकिन बिल्‍डरों की जमात, वो बड़ा अच्‍छा printed booklet दिखाते हैं। वो भी बेचारा उसमें जुड़ जाता है। उसे technical knowledge तो होती नहीं, पैसे देता रहता है। समय के अंदर मकान नहीं मिलता है। जो कहा गया वो मकान नहीं मिलता है। मध्‍यम वर्ग के व्यक्‍ति के जीवन में एक बार ही तो मकान बना होता है। पूरी पूंजी लगा देता है। भाइयो-बहनों, हमने Real estate bill लाकर के नकेल डाल दी है, ताकि मध्‍यम वर्ग का परिवार जो भी व्‍यक्‍ति अपना घर बनाना चाहता होगा, आज उसको कोई रुकावट नहीं आएगी। इन कामों को करने की दिशा में हमने काम किया है।

भाइयों-बहनों, मैंने पहले ही कहा श्रीमद राजचंद्र जी, जिनकी 150वीं जयंती है। महात्‍मा गांधी उन्‍हें अपना गुरु मानते थे और श्रीमद राजचंद्र जी के साथ जब वो साउथ अफ्रीका में थे, तब भी श्रीमद राजचंद्र जी के साथ पत्र व्‍यवहार करते थे। एक पत्र में श्रीमद राजचंद्र जी ने गांधी जी के साथ हिंसा और अहिंसा की चर्चा की थी और राजचंद्र जी कह रहे थे कि जिस समय हिंसा का अस्‍तित्‍व रहा है, उसी समय से अहिंसा का भी सिद्धांत आया है। दोनों में अहम ये है कि हम किसे महत्‍व देते है या फिर इनमें किसका उपयोग मानव हित में हो रहा है।

भाइयो-बहनों, हिंसा-अहिंसा की चर्चा हमारे देश में बहुत स्‍वाभाविक है। मानवता हमारी रगों में है। हम एक महान विराट संस्कृति के लोग हैं। ये देश विविधताओं से भरा हुआ है, रंग-रूप से भरा हुआ है। ये भारत मां का गुलदस्ता ऐसा है, जिसमें हर प्रकार की खुशबू है, हर प्रकार के रंग हैं, हर प्रकार के सपने हैं। भाइयों-बहनों, विविधता की एकता, ये हमारी सबसे बड़ी ताकत है, एकता का मंत्र हमारी जड़ों से जुड़ा हुआ है। भाइयों-बहनों, जिस देश की 100 से ज्यादा भाषाएं हों, सैंकड़ों बोलियां हों, अनगिनत पहनाव हों, अनगिनत जीवन पद्धतियों हों, उसके बाद भी ये देश सदियों से एक रहा है, उसका मूल कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत है। हम सम्मान देना जानते हैं, हम सत्कार करना जानते हैं, हम समावेश करना जानते हैं इस महान परंपरा को लेकर के हम चले हैं और इसलिए हिंसा और अत्याचार का हमारे देश में कोई स्थान नहीं है। अगर भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाना है, भारत के सपनों को पूरा करना है तो हमारे लिए हिंसा का मार्ग कभी कामयाब नहीं होगा।

आज कहीं, जंगलों में माओवाद के नाम पर, सीमा पर उग्रवाद के नाम पर, पहाड़ों में आतंकवाद के नाम पर, कंधे पर बंदूक लेकर के निर्दोषों को मारने का खेल चला जा रहा है। त्राहि-त्राहि हो गया, ये धरती माता रक्त से रंजित होती गई हैं, लेकिन इस आतंकवाद के रास्ते पर जाने वालों ने कुछ नहीं पाया है। मैं उन नौजवानों को कहना चाहता हूं। ये देश हिंसा को कभी सहन नहीं करेगा, ये देश आतंकवाद को कभी सहन नहीं करेगा, ये देश आतंकवाद के सामने कभी झुकेगा नहीं, माओवाद के सामने कभी झुका नहीं। लेकिन मैं उन नौजवानों को कहता हूं अभी भी समय है, लौट आइए, अपने मां-बाप के सपनों की ओर देखिए, अपने मां-बाप की आशा-आकांक्षाओं की ओर देखिए, मुख्यधारा में आइए, एक सुख-चैन की जिंदगी जिए। हिंसा का रास्ता कभी किसी का भला नहीं करता है।

भाइयों-बहनों, हम जब विदेश नीति की बातें करते हैं, मैं उसका लंबा-चौड़ा जिक्र करना नहीं चाहता हूं, लेकिन जिस दिन हमने शपथ लिया था, सार्क देशों के नेताओं को बुलाया था, हमारा संदेश साफ था कि हम सभी देश, अड़ोस-पड़ोस के हम सभी देश, हम सबकी एक सबसे बड़ी common चुनौती है गरीबी। आओ हम मिलकर के गरीबी से लड़ें, अपनों से लड़ाई लड़के तबाह तो हो चुके हैं, लेकिन अगर गरीबी से लड़ेंगे, तो हम तबाही से निकलकर समृद्धि की ओर चल पड़ेंगे और इसलिए मैं सभी पड़ोसियों को गरीबी से लड़ने का निमंत्रण देता हूं। हमारे देश के नागरिकों को, हर देश के नागरिकों को गरीबी से मुक्ति दिलाना- इससे बड़ी कोई आजादी नहीं हो सकती। हमारे कोई भी पड़ोसी देश का नागरिक जब गरीबी से आजाद होगा, तब हिंदुस्तान कितनी खुशी का अनुभव करेगा, जब हमारे पड़ोसी देश का गरीब, गरीबी से आजादी पाता हो।

भाइयों-बहनों, मानवता की प्रेरणा से पले-बड़े लोग कैसे होते हैं और आतंकवाद को पुरस्‍कार देने वाले लोग कैसे होते हैं। मैं विश्व के सामने दो चित्र रखना चाहता हूं, दो घटनाएं उनके सामने रखना चाहता हूं और मैं विश्व को कहता हूं, मानवता में विश्वास रखने वाले लोगों को कहता हूं कि जरा तराजू से तौलकर के देखिए वो एक घटना जब पेशावर में आतंकवादियों ने निर्दोष बच्चों को मौत के घाट उतार दिया, घटना पेशावर में हुई थी, घटना आतंकवादी थी, निर्दोष-निर्दोष बालकों का रक्त बहाया गया था। ज्ञान के मंदिर को रक्त रंजित कर दिया था, निर्दोष बच्चों को मार दिया गया था।

ये हिन्दुस्तान संसद की आँखों में आंसू थे। भारत का हर स्कूल रो रहा था। भारत का हर बच्चा पेशावर के बच्चों की मौत से सदमा अनुभव कर रहा था। उसकी आँखों से आंसू सूखते नहीं थे। आतंकवाद से मरने वाला पेशावर का बच्चा भी हमें दर्द देता था, दुख देता था। ये है हमारी मानवता से पली बड़ी संस्कृति की प्रेरणा, यही है हमारी मानवता, लेकिन और तरफ़ देख लीजिये कि जब आतंकवादियों को Glorify करने का काम हो रहा था। जहां आतंकवादी घटना में निर्दोष लोग मारे जाएं तो जश्न मनाए जाते हैं। ये कैसा आतंकवाद से प्रेरित जीवन है। कैसे आतंकवाद से प्रेरित सरकारों की रचनाएं हैं। ये दो भेद दुनिया भली भांति समझ लेगी। इतना मेरे लिए काफी है।

मैं आज लालकिले की प्राचीर से कुछ लोगों का विशेष अभिनन्दन और आभार व्यक्त करना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों से बलूचिस्तान के लोगों ने, Gilgit के लोगों ने, पाक Occupied कश्मीर के लोगों ने, वहां के नागरिकों ने जिस प्रकार से मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया है, जिस प्रकार से मेरा आभार व्यक्त किया है, मेरे प्रति उन्होंने जो सद्भावना जताई है, दूर-दूर बैठे हुए लोग जिस धरती को मैंने देखा नहीं है, जिन लोगों के विषय में मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई है, लेकिन ऐसे दूर सुदूर बैठे हुए लोग हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को अभिनन्दन करते हैं, उसका आदर करते हैं, तो मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का आदर है, वो मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का सम्मान है। और इसलिए ये सम्मान का भाव, धन्यवाद का भाव करने वाले बलूचिस्तान के लोगों का, Gilgit के लोगों का, पाक के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों का मैं आज तहे दिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूँ।

भाइयों-बहनों, आज जब हम आजादी के 70 साल मना रहे हैं तब देश में स्वतंत्रता सैनिकों का बड़ा योगदान रहा है। इन स्वतंत्र सैनिकों का योगदान रहा है तो। आज मैं इन सभी मेरे श्रद्धेय स्वतंत्रता सैनिक परिवारजनों को, जो उनको सम्मान राशि मिलती है, जो पेंशन मिलती है। उस पेंशन में बीस प्रतिशत की वृद्धि करने का सरकार निर्णय कर रही है। जिस स्वतंत्रता सेनानी को अगर पहले 25 हजार मिलते थे, तो अब उसको 30 हजार रुपये मिलेंगे। और हमारे इन स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान को एक छोटा-सा, एक मेरा पूजा-अर्चन का प्रयास है।

भाइयों–बहनों, हमारे देश के आजादी के इतिहास की बातें होती हैं, तो कुछ लोगों की चर्चा तो बहुत होती है। कुछ लोगों की आवश्यकता से भी अधिक होती हैं। लेकिन आजादी में जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासियों का योगदान अप्रतिम था। वो जंगलों में रहते थे। बिरसा मुंडा का नाम तो शायद हमारे कानों में पड़ता है। लेकिन शायद कोई आदिवासी जिला ऐसा नहीं होगा कि 1857 से लेकर के आजादी आने तक आदिवासियों ने जंग न की हों बलिदान न दिया हो। आजादी क्या होती है? गुलामी के खिलाफ जंग क्या होता है? उन्होंने अपने बलिदान से बता दिया था। लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों को इस इतिहास से उतना परिचय नहीं है। सरकार की इच्छा है, योजना है। आने वाले दिनों में उन राज्यों में इन स्वतंत्र सेनानी जो आदिवासी थे। जंगलों में रहते थे। अंग्रेजों से जूझते थे। झुकने को तैयार नहीं थे। उनके पूरे इतिहास को समावेश करते हुए, इन वीर आदिवासियों को याद करते हुए एक स्थायी रूप से Museum बनाने के लिए जहां-जहां राज्य के अंदर कोई एकाध जगह हो सकती है जहां सबको समेट करके बड़ा Museum बनाया जा सकता है। और ऐसे अलग-अलग राज्यों में Museum बनाने की दिशा में सरकार काम करेगी, ताकि आने वाली पीढ़ियों को हमारे देश के लिए मर मिटने में आदिवासी कितने आगे थे, उसका लाभ मिलेगा।

भाइयों-बहनों, महंगाई में कुछ चीजों की चर्चाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन हम अनुभव कर रहे हैं कि गरीब के घर में अगर बीमारी आ जाए, तो उसकी पूरी अर्थ रचना समाप्‍त हो जाती है। बेटी की शादी तक रूक जाती है। बच्‍चों की पढ़ाई तक अटक जाती है, कभी शाम को खाना भी नहीं मिलता है। आरोग्‍य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं और इसलिए मैं आज लाल किले की प्राचीर से गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले मेरे इन परिवारों के आरोग्‍य के लिए सरकार एक अहम कदम उठाने जा रही है। हम यह योजना ले करके आए हैं कि आने वाले दिनों में ऐसे किसी गरीब परिवार को आरोग्‍य की सेवाओं का लाभ लेना है, तो वर्ष में एक लाख रुपये तक का खर्च भारत सरकार उठाएगी, ताकि मेरे गरीब भाइयों को, इन आरोग्‍य की सेवाओं के कारण वंचित रहना न पड़े। उनके सारे सपने चूर-चूर न हो जाएं।

और इसलिए मेरे प्‍यारे भाइयों-बहनों आजादी के इस पावन पर्व में एक नया संकल्‍प, नई ऊर्जा, नया उमंग ले करके आओ हम चल पड़ेंहमारे लिए जिन्‍होंने आजादी के लिए बलिदान दिया, उनसे प्रेरणा पा करके, आजादी के लिए जीने वालों के लिए प्रेरणा पा करके, देश के लिए मरने का मौका तो नहीं मिल रहा है, लेकिन देश के लिए जीने का मौका जरूर मिल रहा है। हम देश के लिए जी करके दिखाए, देश के लिए कुछ करके दिखाए, अपने दायित्‍वों को भी निभाएं, औरों को दायित्‍व के लिए प्रेरित भी करे। एक समाज, एक सपना, एक संकल्‍प, एक दिशा, एक मंजिल इस बात को ले करके हम आगे बढ़ें। इसी एक भावना के साथ मैं फिर एक बार महापुरूषों को नमन करते हुए जल, थल, नभ में हमारी रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने वाले, हमारे पुलिस के नौजवान, 33 हजार शहादतों को नमन करते हुए, मैं देश के भविष्‍य की ओर सपनों को देखते हुए, अपने आप को समर्पित करते हुए आज लाल किले की प्राचीर से आप सबको पूरी ताकत के साथ मेरे साथ बोलने के लिए कह रहा हूं भारत माता की जय..

आवाज दुनिया के हर कोने में जानी चाहिए –

भारत माता की जय, भारत की जय।

वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम।

जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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