Saturday 6 February 2016

अार्दश कार्यकार्ता

अपना धर्म, जिसमें अभ्युदय और निःश्रेयस् दोनों निहित हैं, हमारी आँखों के सामने दिशा-दिग्दर्शन करनेवाले ध्रुव तारे के समान सदैव रहे तथा उसके अधिष्ठान पर राष्ट्र का पुनरुज्जीवन किया जाए। इसलिये व्यावहारिक दैनिक जीवन में उनके उपदेशों का अनुसरण करें, अपने को व्यक्तिश और सामाजिक दृष्टि से बलशाली बनायें, अपने सामूहिक जीवन में पावित्र्य लाएं, अपने हृदय में यह भाव जागृत करें कि हमें इस विश्व में एक जीवनोद्देश्य पूर्ण करना है। पूर्ण विश्वास रखें कि हम अमर जाति हैं। यदि हम एकात्मता की भावना से धर्म, जीवन की विषुद्धता और अंतिम सत्य की अनुभूति के आधार पर समाज को शक्तिशाली, निर्भय और संगठित करते हैं, तो पुनश्च विश्वगरुु का पद प्राप्त कर सकते हैं।

सामान्यतः मनुष्य जगत् के आकर्षणों से विचलित होता ही है। यदि किसी को राजनीति के क्षेत्र में जाने का अवसर मिल गया, तो वह सोचने लगता है कि वह भगवान् के समकक्ष हो गया है। अब उसके लिये कोई कर्तव्य शेष नहीं रहा। भगवान् ने गीता में कहा है - 'मेरे लिये कोई कर्तव्य नहीं। कर्म के लिये मेरे मन में कोई स्पृहा भी नहीं।' इसी प्रकार राजनीति के क्षेत्र में गया हुआ व्यक्ति भी अपने को भगवान् मान कर कहता है कि मेरे लिये अब कोई कर्म नहीं। राजनीतिक क्षेत्र में भाषणबाजी करना ही मेरे लिये सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रकार्य है, बाकी सब नगण्य व क्षुद्र हैं। राजनीतिज्ञों में ऐसा अभिमान उत्पन्न् हो जाता है।

यदि अपने मन में यह दृढ़ धारणा हो कि यह राष्ट्र अपना है और यहाँ अपना राष्ट्र-जीवन है, यह राष्ट्र-जीवन श्रेष्ठ और उन्नत बने, इसका दायित्व अपने ऊपर ही है, तो यह समझना कठिन नहीं होगा कि वह दायित्व पूर्ण करने के लिये केवल वर्तमान बातों की ओर ध्यान न देते हुए चिरंतन रूप से प्रत्येक व्यक्ति के ह्दय कपस में राष्ट्र-भक्ति की भावना जागृत करने हेतु एक सुव्यवस्थित तथा, राष्ट्रीय भावना से प्रभावित ऐसा कार्य खड़ा करना पडे़गा।

यदि हमारे मन में विकार नहीं है, हमारी श्रध्दा का केन्द्र नहीं हिला है, तो हमारे मन में झंझावातों में उड़ने की प्रवृत्ति पैदा नहीं हो सकती। राष्ट्र का चैतन्य किसी न किसी रूप में प्रकट होगा ही। बीज बो दिया है, वट वृक्ष अवश्य ही खड़ा होगा। सम्पूर्ण भारत इसके नीचे आएगा। स्थान-स्थान पर नई जड़ जमेगी। इस निश्चय पर अडिग होकर चलेंगे तो संकट नहीं आ सकता। संकट तो अधूरी शक्ति पर आता है, पूर्ण पर नहीं। एकात्मता के आधार पर पूर्ण नीतिमत्ता से समाज को प्रबल एकसूत्रता में संगठित किया तो उस पर कोई संकट नहीं आएगा, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र-जीवन उसकी प्रेरणा से चलेगा। सत्ताधीश कौन है, इसका सवाल नहीं। हम बढ़े हैं या नहीं, यह देखें।

जनसाधारण को शिक्षित करना तथा उनके द्वारा चुने गये योग्य व्यक्तियों को राष्ट्रहितकारी कार्याे में संलग्न बनाये रखने का अपना कार्य तभी संभव है और हम तब ही उसके पात्र बन सकते हैं, जब हमारा समाज के साथ आत्मीयतापूर्ण निकट का सम्बन्ध हो।

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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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